गोवर्धन में उद्धवजी का लताओ से प्रकट होना
जब भगवान अपने धाम को चले गए तब एक दिन भगवान श्रीकृष्ण की विरह-वेदना से व्याकुल सोलह हजार रानियाँ अपने प्रियतम पतिदेव की चतुर्थ पटरानी यमुना जी को आनंदित देखकर सरलभाव से उनसे पूछने लगी.
रानियों ने कहा - बहिन कालिंदी ! हमारी तरह तुम भी श्रीकृष्ण की पत्नी हो, हम तो विरहाग्नि में जली जा रही है,किन्तु तुम्हारी यह स्थिति नहीं है.तुम प्रसन्न हो, इसका क्या कारण है?
यमुना जी ने कहा - अपनी आत्मा में ही रमण करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण आत्माराम है और उनकी आत्मा है -श्रीराधा जी ! मै दासी की भांति राधाजी की सेवा करती रहती हूँ उनकी सेवा का ही यह प्रभाव है कि विरह हमारा स्पर्श नहीं कर सकता.
भगवान श्रीकृष्ण की जितनी भी रानियाँ है सब की सब श्री राधा जी के ही अंश का विस्तार है.राधा कृष्ण एक है.उनका परस्पर संयोग है और उन दोनों का प्रेम ही वंशी है.
तुम सब का भी श्री कृष्ण के साथ वियोग नहीं हुआ है.किन्तु तुम इस रहस्य को इस रूप में नहीं जानती हो इसलिए इतनी व्याकुल हो रही हो.
जब अक्रूर जी श्रीकृष्ण को मथुरा ले गए थे तब गोपियों को भी विरह की प्रतीति हुई थी वह भी वास्तविक विरह नहीं था विरह का आभास मात्र था.
ये बात गोपियाँ नहीं जानती थी. जब उद्धव जी व्रज में आये तब उन्होंने समाधान किया तब गोपियाँ इस बात को समझी.
यदि तुम्हे भी उद्धव जी का सत्संग प्राप्त हो जाए तो तुम भी श्री कृष्ण के साथ नित्य विहार का सुख प्राप्त कर लोगी.
रानियाँ बोली - सखी ! तुम्हारा जीवन धन्य है क्योकि तुम्हे कभी भी अपने प्राणनाथ के वियोग का दुःख नहीं भोगना पडता.
अब ऐसा कोई उपाय बताओ जिससे उद्धव जी शीघ्र मिल जाए.
तब यमुना जी बोली - जब भगवान अपने परमधाम को पधारे तब उद्धव जी भगवान की आज्ञा से बद्रिकाश्रम चले गए, परन्तु साधन की फलरूपा भूमि है -व्रजभूमि इसे भी इसके रहस्यों सहित भगवान ने पहले ही उद्धव को दे दिया था
किन्तु वह फल भूमि यहा से भगवान के अन्तःर्धान होने के साथ ही स्थूल द्रष्टि से परे जा चुकी है.इसलिए उद्धव जी यहाँ प्रत्यक्ष दिखायी नहीं देते.
परन्तु एक स्थान है जहाँ उद्धव जी का दर्शन हो सकता है.गोवर्धन पर्वत के निकट भगवान की लीला सहचरी गोपियों की बिहार स्थली है
वहाँ की लता अंकुर और बेलो के रूप में अवश्य ही उद्धव जी वहाँ निवास करते है.
लताओ के रूप में उनके रहने का यही उद्देश्य है कि भगवान की प्रियतमा गोपियों की चरण रज् उन पर पड़ती रहे.
उद्धव जी के सम्बन्ध में एक बात निश्चित यह भी है कि उन्हें भगवान ने अपना उत्सव स्वरुप प्रदान किया है.भगवान का उत्सव उद्धव जी का अंग है.
इसलिए तुम सब व्रज में कुसुमसरोवर के पास ठहरो. भगवतभक्तो की मंडली एकत्र करके वीणा वेणु, मृदंग, आदि से भगवन नामो और लीलाओ के कीर्तन, भगवन्त सम्बन्धी कथा के द्वारा उत्सव आरंभ करो.
इस प्रकार जब उस महान उत्सव का विस्तार होगा तब निश्चित ही उद्धव जी का दर्शन तुम्हे मिलेगा.
तब रानियों व्रजनाभ और परीक्षित जी को लेकर व्रज में आई और यमुना जी के बताये अनुसार गोवर्धन के निकट कुसुम सरोवर पर उत्सव (श्रीकृष्ण कीर्तन )आरंभ कर दिया.
वृषभानु नंदिनी श्री राधा जी और उनके प्रियतम श्रीकृष्ण की वह लीला भूमि जब साक्षात् संकीर्तन की शोभा से संपन्न हो गई उस समय वहाँ रहने वाले सभी भक्त जन एकाग्र हो गए,उनकी द्रष्टि उनके मन की वृत्ति कही अन्यत्र न जाती थी तभी सबके देखते देखते वहाँ फैले हुए तृण,गुल्म और लताओ के समूह से प्रकट होकर श्री उद्धव जी सबके सामने आये.
उनका शरीर श्यामवर्ण था, उस पर पीताम्बर शोभा पा रहा था, वे गले में वनमाला और गुंजामाला धारण किये हुए थे,
और मुख से बारंबार गोपीवल्लभ श्रीकृष्ण की मधुर लीलाओ का गान कर रहे थे.उद्धव जी के आगमन से उस संकीर्तन की शोभा बहुत बढ़ गई.
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