अज्ञानता से मुक्ति का उपाय
एक समय की बात है देवर्षि नारद गगन में विचरण कर रहे थे, कि सहसा ही उनकी दृष्टि धरा पर पड़ी और वे ठहाका मारकर जोर-जोर से हँस पड़े, यह देखकर उनके एक मित्र ने आश्चर्य चकित होकर उनसे इस प्रकार ठहाका लगाने का कारण पूछा तो उन्होंने संकेत कर धरा पर चल रहे घटना क्रम को दिखाकर कहा--अब तुम ही बतलाओ मैं हसूँ नहीं तो और क्या करूं l*मृतुलोक में (पृथ्वी ) किराने का एक व्यापारी एक बैल को डंडे से पीट रहा था, क्योंकि उसने उसके कुछ चांवल खा लिए थे, देवर्षि ने कहा--*यदि ये अज्ञानी व्यापारी यह जानता और पहचानता कि वह जिसे पीट रहा है, वह पिछले जन्म में उसका ही पिता था, भगवत-भक्ति न करने के कारण बैल बनकर, क्षुधा से त्रषित होने के कारण उसी की अपनी दूकान पर आ गया, तो उसे कभी नहीं पीटता l अहिंसा धर्म का ज्ञान ना होने के कारण एवं , अज्ञानता के वशीभूत होने के कारण इस प्रकार जीव के साथ हिंसा कर रहा है l*
देवर्षि के वचन श्रवण कर मित्र ने उनसे पूछा कि इस अज्ञानता से मुक्ति प्राप्त करने के लिए सामान्य मनुष्य को क्या करना चाहि तो देवर्षि ने कहा-ज्ञान विराग नयन उर गारी----आत्म कल्याण की कामना करने वाले मनुष्य को परिश्रम एवं साधना से ज्ञान और वैराग्य रूपी नेत्र प्राप्त करना चाहिए और भगवत कृपा से उसे यह शक्ति प्राप्त है l
विशेष ,,,,,,,,,,,, ईश्वर ने आपको तीन दिव्य कोष दिए है वे है --- बुद्धि , मन एवं अहंकार !--- १. " सत्कर्मों" से बुद्धि शनैः शनैः दिव्य स्वरुप को प्राप्त होती है ! २." सात्विक आहार" से मन आध्यात्मिक एवं सकारात्मक ऊर्जा का उत्पादन करने लगता है यानि आपकी सुन्दर प्रवृतियों ( emotions ) का निर्माण होता है ! ! तामसिक आहार ना खाने एवं आसुरी प्रवृति के मनुष्यों की संगत ना करने पर अहंकार भागने लगता है !
अतः "आत्म कल्याण " के लिए गौ माता की शरण में जाये और माता से प्राप्त
दूध , दही घृत से सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करें ! हमेशा याद रखे अन्न एवं अच्छा आहार खाने वाली ये पुण्यात्मा ( गौ माता ) आपको अमृत की वर्षा कर देगी इसका सानिध्य ही सौभाग्य से प्राप्त होता है ! भगवन शिव ने गौ माता का सानिध्य प्राप्त किया तो "भांकड़ " कहलाये , प्रभु श्री राम ने गौ माता की सेवा के लिए परम पद छोड़ा ( गो द्विज धेनु देव हितकारी ,कृपा सिंधु मानुष तन धारी - राम चरित मानस ) और श्री कृष्ण ने गौ सेवा में जीवन बिताया ! अतः भगवत कृपा के लिए माता की शरण में आये ! माता के दूध में समस्त देवता ( यानि देविक प्रवृति उत्पन्न करने वाले खनिज तत्व ) विध्यमान है ! अपने बच्चों को भ्रष्ट तरीकों से कमाए धन से परवरिश करने की बजाय उनके कल्याण के लिए नेक कमाई से पोषण एवं उनके कल्याण की सोच की आवश्यकता है! यह तभी संभव है जब आपके अंदर उनके सुन्दर प्रवृतियों के निर्माण एवं भावनात्मक विकास के अनेक विचार उत्पन्न होंगे, एक जड़ बुद्धि एवं मन के पास यह विचार ही उत्पन्न नहीं होते है !
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